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रायगढ़ आसपास

चक्रधर समारोहः राहुल शर्मा ने संतूर वादन से कश्मीर के पहाड़ी संगीत की बिखेरी महक

डॉ.जी रथिस बाबू के भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी की प्रस्तुति ने जीता दर्शकों का दिल
नन्ही कलाकार सुश्री अन्विता विश्वकर्मा ने कत्थक नृत्य से पूरे चक्रधर समारोह में बिखेरी यश की चांदनी
इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति के इंद्रधनुष का किया जीवंत प्रदर्शन
करमा, सरहुल, पंथी, गौरा-गौरी आदि लोकनृत्य ने बिखेरी सभी दर्शकों के मन को छूने और झूमाने वाली खुशबू
प्रसिद्ध तबला वादक अंशुल प्रताप सिंह ने संगीत की सुरमयी शाम को किया गुंजायमान, शिव तांडव को तबले की थाप से किया अभिव्यक्त
रायगढ़ की बेटी सुश्री दीक्षा घोष ने माता रानी के रौद्र रूप और नारी शक्ति को भरतनाट्यम नृत्य से किया प्रस्तुत

रायगढ़। दस दिवसीय आयोजित चक्रधर समारोह की 6 वीं संगीत संध्या में मुम्बई से आये श्री राहुल शर्मा ने संतूर के सुर के जरिए कश्मीर के पहाड़ी संगीत से कला प्रेमियों को रूबरू करवाया। इसी तरह भिलाई के डॉ.जी रथीस बाबू के भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी पर आधारित खूबसूरत भावभंगिमा और कलाकारी की प्रस्तुति ने सभी दर्शकों का दिल जीत लिया। समारोह की अगली प्रस्तुति में तबला वादक श्री अंशुल प्रताप सिंह ने अपने तबले की थाप से संगीत की इस सुरमयी शाम को गूंजायमान कर दिया। वहीं रायगढ़ की बेटी सुश्री दीक्षा घोष और उनकी टीम द्वारा माता रानी के रौद्र रूप और नारी शक्ति को भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। जिससे दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम के दौरान रायपुर से आयी सुश्री अन्विता विश्वकर्मा के द्वारा गणपति जगवंदन पर नृत्य और भाव की बहुत ही सुंदर और सुमधुर कत्थक की प्रस्तुति ने सभी श्रोताओं का मन मोहा। कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति के इंद्रधनुष का किया जीवंत प्रदर्शन किया।

समारोह के दौरान पहली प्रस्तुति में भोपाल के प्रसिद्ध तबला वादक श्री अंशुल प्रताप सिंह ने अपने तबले की थाप से संगीत की इस सुरमयी शाम को गूंजायमान कर दिया। उन्होंने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के तांडव नृत्य को तबले की थाप से अभिव्यक्त किया। श्री अंशुल ने अपने दादा श्री हरिश्चंद्र सिंह और पिता ठाकुर उदय प्रताप सिंह से तबले की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में वे अपने गुरु श्री संजय सहाय से तबला वादन का विशेष प्रशिक्षण ले रहे हैं। श्री अंशुल ने सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड सहित देश-विदेश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने ताज महोत्सव, खुजराहो महोत्सव सहित विभिन्न समारोह एवं अवसरों पर अपने तबला वादन से कला प्रेमियों को संबोधित किया। उन्होंने मोहन वीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट, बांसुरी वादक श्री हरिप्रसाद चौरसिया जैसे विश्व विख्यात कलाकारों के साथ तबले पर संगत किया।

देश के प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के पुत्र श्री राहुल शर्मा, मुम्बई ने चक्रधर समारोह में रायगढ़ की धरती को संगीत के सुरों में सराबोर कर दिया। संतूर के सुर के जरिए उन्होंने कश्मीर के पहाड़ी संगीत से कला प्रेमियों को रूबरू करवाया। श्री राहुल शर्मा ने अपने पिता श्री शिव कुमार शर्मा से संतूर सीखा। श्री शर्मा ने एडिनबर्ग फेस्टिवल सहित देश-विदेश के तमाम कल मंचों पर अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों में भी अपने संगीत से रूबरू कराया। श्री राहुल विश्व विख्यात तबला वादक श्री जाकिर हुसैन के साथ संतूर का संगत कर चुके हैं। संतूर एक तन्त्री वाद्य यंत्र है। इसका भारतीय नाम ‘शततंत्री वीणाÓ यानी सौ तारों वाली वीणा है जिसे बाद में फारसी भाषा से संतूर नाम मिला। संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था। इसे विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय पंडित शिवकुमार शर्मा को जाता है।

रायपुर की नन्ही कलाकार सुश्री अन्विता विश्वकर्मा ने पूरे चक्रधर समारोह में यश की चांदनी बिखेरी। सुश्री अन्विता विश्वकर्मा ने गणपति जगवंदन पर नृत्य और भाव की बहुत ही सुंदर और सुमधुर कत्थक की प्रस्तुति दी जिसने सभी श्रोताओं का मन मोहा। सुश्री अन्विता विश्वकर्मा मात्र तीन वर्ष की उम्र से नृत्य कला से जुड़ गई थी। वर्तमान में वे लखनऊ घराने के कत्थक नृत्य में निपूर्ण हो चुकी है। वे श्री अंजनी ठाकुर की शिष्या है। सुश्री अन्विता विश्वकर्मा अपने दादा श्री आर.एस.विश्वकर्मा जैसा आईएएस ऑफिसर बनना चाहती है।
रायगढ़ की बेटी सुश्री दीक्षा घोष और उनकी टीम द्वारा आज माता रानी के रौद्र रूप और नारी शक्ति को भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। सुश्री दीक्षा घोष रायगढ़ में भरतनाट्यम की नृत्य शिक्षिका है। उन्होंने पश्चिम बंगाल के रविन्द्र भारतीय विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है। उन्हें उत्तराखंड के भागीरथी उत्सव पुरुस्कार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, भिलाई, बिलासपुर सहित अन्य कई बड़े शहरों में सुंदर नृत्य प्रस्तुति के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है।

भिलाई से आए डॉ.जी रथीस बाबू के भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी पर आधारित खूबसूरत भावभंगिमा और कलाकारी की प्रस्तुति ने सभी दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने अपनी सहयोगी टीम के साथ भगवान श्री गणेश, भगवान श्री राम के प्रति अर्चना, अर्धनारीश्वर आदि पर प्रस्तुति दी। डॉ.जी रथीस बाबू आईसीसीआर व संस्कृति मंत्रालय के पैनल्ड आर्टिस्ट है। उन्होंने मध्यभारत में बड़ी संख्या में छात्रों को भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी की शिक्षा प्रदान की है। रायपुर से आयी आरती सिंह ने कथक नृत्य पर बेजोड़ प्रस्तुति दी। डॉ.आरती सिंह लगभग तीन दशकों के इस यात्रा में देश के प्राय: सभी प्रतिनिधि नृत्य समारोहों में एकल प्रदर्शन के साथ सामूहिक प्रस्तुति दे चुकी है। उन्हें नृत्य में नयी परिकल्पनायें एवं नृत्य संरचनाएं करने का अनुभव है।

इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर आधारित विविध छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य की मन को छूने और झुमाने वाली आकर्षक प्रस्तुति दी गई। जिससे कार्यक्रम स्थल पर दूर-दूर से पहुंचे सभी दर्शक कत्थक, भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, बांसुरी, तबला, संतूर, सितार, अकार्डियन वादन, कव्वाली, भजन, गजल सहित विभिन्न शास्त्रीय कलाओं के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के करमा, सरहुल, पंथी, गौरा-गौरी, भरथरी आदि लोकरंगो में डूबे। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ प्रदर्शन एवं ललित कलाओं के शोध में अग्रणी संस्थान है। यह कला, फैशन डिजाइनिंग, उच्च स्तरीय शोध कार्य आदि विभिन्न गतिविधियों के लिए संपन्न है। यह संस्थान लोक कला के प्रचार व संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रहा है। तातापानी महोत्सव, युवा उत्सव, नर्मदा उत्सव, चक्रधर समारोह सहित विभिन्न समारोह में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय की सक्रिय भागीदारी रहती है। आज चक्रधर समारोह में कला विश्वविद्यालय खैरागढ़ की टीम द्वारा विभिन्न लोककला का प्रदर्शन एवं निर्देशन डॉ.योगेंद्र चौबे, अधिष्ठाता, लोककला लोकरंग (प्राध्यापक) के मार्गदर्शन में प्रस्तुत किया गया। डॉ.योगेंद्र चौबे सहज व सांस्कृतिक नाट्य शैली के लिए जाने जाते है। रंगमंच में उल्लेखनीय योगदान के लिए कई संस्थानों द्वारा इन्हे सम्मानित किया जा चुका है। शोध और लेखन कार्य में भी इनकी गहरी रुचि है। वे पीएचडी के बाद इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन कार्य में सक्रिय है।

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